जीवन का उद्देश्य-श्री व्यास देव जी द्वारा रचित पद्मपूराण के अनुसार ब्रम्हांड के 84 लाख योनियाँ हैं, इसमे से मात्र 4 लाख प्रकार के मानव योनि है और सबसे श्रेष्ठ प्राणी मानव ही है। परंतु मानव जीवन का उद्देश्य क्या है? और क्यूँ केवल मानव ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है?
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Gita के अनुसार जीवन का उद्देश्य क्या है?
मानव जन्म की प्राप्ति से पुर्ब, लाखों योनियों में जन्म मृत्यु की चक्र में बार बार भटकने के बाद, आत्मा को ये दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त होता है। जो केवल श्रेष्ठ ही नही बल्कि एक स्वर्णिम अवसर माना जाता है जन्म मृत्यु की चक्र से बाहार निकलने का। क्यूँ की ये जीवन केबल सुख या दुख भोगने के लिए नहीं मिला है। ये श्रेष्ठ योनि इसीलिए प्राप्त हुआ, ताकि आप अपना विवेक और चेतना शक्ति के प्रोयोग से ज्ञान और बैराग्य की प्राप्ति करसके।अंत मै परम ब्रम्ह की खोज मे अपने आपको नियुक्त करके मोक्ष की प्राप्त कर सके।
जन्म मृत्यु की चक्र से बाहार निकलने का उपाय:
अभी आपने जाना Gita के अनुसार जीवन का उद्देश्य क्या है?, लेकिन अब जानेंगे गीता के द्वारा जन्म और मृत्यु की चक्र से निकलना कैसे है ? श्रीमद भगवद गीता के अक्षर ब्रह्म योग (अध्याय-08, श्लोक-5,6) में भगवान श्री कृष्ण दावे के साथ निश्चित करते है की जो ब्यक्ति शरीर त्यागते समय श्री कृष्ण को स्मरण करते हैं, वे उनके पास जाएंगे।
तो इस प्रकार से ब्यक्ति को अंतिम समय मे भगवान का नाम लेना चाहिए। आपके मन मे इसके बिपरित सवाल भी आता होगा की अंतिम समय में यदि हम भगवान के नाम नही ले पाए, अपना घर-गृहस्ति, धन-संपत्ति और संसार के बस्तुओं मे आसक्ति के कारण ये सबका चिंतन करोगे तो ये भी निश्चित है की आप पुनः इस दु:खालयम मे जन्म लेंगे और जन्म मृत्यु की चक्र मे फस जाएंगे।
मानब जीवन मे लक्ष की प्राप्ति कैसे करे ?
Gita के अनुसार जीवन का उद्देश्य क्या है?, ये तो हमे पता चल गया और इसका उपाय भी जानलिए, परंतु क्या अंतिम समय में भगवान के नाम लेना संभव है? जब ब्यक्ति अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है, तब शरीर के वृद्धा अवस्था के कारण उसका बोलना, समझना और याद करना असंभव हो जाता है। ऐसे मे आप सम्पूर्ण जीवन काल मे यदि कभी भगवान का नाम ही नही लिया होगा तो अंतिम काल मे कैसे स्मरण आएगा?
इसीलिए मानब जीवन की लक्ष प्राप्ति हेतु आपको सांसारिक कर्मों के साथ भगवान की भक्ति करना जरूरी है। जबसे आपको भक्ति के बारे मै पता चले तबसे सुरू कर देना चाहिए, इससे भक्तियोग कहा जाता है, स्वयं भगवान श्री कृष्ण गिता में बोले है…
श्रीभगवानुवाच।
संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।
तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥5.2॥
भगवान ने उत्तर दिया: कर्म का त्याग और भक्ति दोनों मुक्ति के लिए अच्छे हैं। लेकिन, इन दोनों में से, भक्तिमय सेवा कर्म त्याग से बेहतर है।
अर्थात आपको सांसारिक कर्म के साथ साथ अध्यात्म भी जरूरी है , इस मानब जीबन को सार्थक करने के लिए।
पशु और मनुष्य में क्या अंतर है ?
जीब किसी भी योनि का हो, पशु, पक्षी या मनुष्य, 4 प्रकार की क्रिया सब करते है।
आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।
{ हितोपदेश २५ }
धर्मो हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥
आहार, निद्रा, भय और मैथुन – ये मनुष्य और पशु में समान हैं। इन्सान में विशेष केवल धर्म और चेतना शक्ति है, अर्थात् बिना धर्म के व्यक्ति पशुतुल्य है। क्यूँ की कुत्ता भी अपने लिए खाना का प्रबंध करता है, कुत्ता भी नींद करता है, कुत्ता भी संभोग क्रिया करता है, अपनी बंश बढ़ाता है और अपनी सुरक्षा करता है। लेकिन आज के समाज के मनुष्य इसके अलावा क्या करता है? ओ सब मनुष्य दो पैर वाले पशु ही है जो ये दुर्लभ जीबन को सिर्फ भोग मे व्यर्थ करदेते है।
निष्कर्ष:
एक आत्मा अपने पुर्ब कर्म के आधार पर अलग अलग योनि मे जन्म लेता रहता है, इसी प्रकार जब वो कुछ पुण्य के बल पे मानब शरीर प्राप्त करता है तो उसका प्रारब्ध और बर्तमान के कर्म अनुसार उसको सुख या दुख भोगना पड़ता है। लेकिन जैसे ही जीब को मनुष्य सरीर मिले उसे मुक्ति की मार्ग अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, ब्रम्ह को जाने का जिज्ञासा होना चाहिए। यही मानब का कल्याण कारी मार्ग है, इसके अलावा कोई ऐसा प्राणी नही जो ब्रम्ह की सत्य को जान सके। इसीलिए ये अबसर है खूब सत्कर्म करो, भगवान की भक्ति करो,संतों की सेवा करो और मानब कल्याण के लिए कार्य करो।
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|| धन्यबाद ||