एकादशी क्यूँ किया जाता है?-5 Benefits of Ekadashi

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एकादशी क्यूँ किया जाता है?-5 Benefits of Ekadashi – सनातन संस्कृति मे व्रत अर्थात उपवास का विधान है। भारत मे अलग अलग राज्यों के अलग अलग त्योहार और व्रत बिधी है। उपवास का अर्थ है निकट मे बास करना अर्थात अपने आराध्य के समीप रहकर अपनी सेवा और साधना करना। कोई अपने सांसारिक इच्छाओं के लिए व्रत रखता है तो कोई आध्यात्मिक उन्नति के लिए, लेकिन सारे व्रत-उपवास एक तरफ और एकादशी व्रत की महिमा एक तरफ।

आप कोई व्रत का पालन करे या ना करे इससे आपको कोई दोष या पाप नही लगता, परंतु एकादशी व्रत पालन ना करने का अपराध अवश्य लगता है। इसीलिए एकादशी व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। एकादशी महिमा के वारे में शस्त्रों मे उलेख तो है साथ ही प्राकृतिक द्रष्टिकोण से सभी मनुष्य को खास कर एकादशी का व्रत रखना चाहिए। ये व्रत सभी पापों से मुक्त कराता है और मोक्ष प्रदान करता है। ये व्रत से भगवान विष्णु की प्रसन्नता और उनके धाम बैकुंठ प्राप्त होता है।

शास्त्र और बिज्ञान के आधार पर एकादशी व्रत से जुड़े कुछ जानकारी और महत्त्व जानने के लिए सम्पूर्ण लेख “एकादशी क्यूँ किया जाता है?-5 Benefits of Ekadashi” को पढ़ना जरूरी है।

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एकादशी ऊतपन कथा- Story of Ekadashi

(एकादशी क्यूँ किया जाता है?-5 Benefits of Ekadashi) – सत्य युग में संखासुर नामक एक दैत्य (राक्षस) को भगवान विष्णु ने संघार किया था। संखासुर के पुत्र का नाम था मूर, जिसने अपनी पिता के हत्यारे यानि भगवान विष्णु से प्रतिशोध लेने के कारण बन मे घोर तपस्या करके ब्रम्हा जी से वरदान प्राप्त किया। मूर राक्षस ने बोला – देवता, दैत्य , मुनि-ऋषि , मनुष्य, शिव, विष्णु, सभी लोकपाल, दिगपाल और जहां तक ब्राम्हदेव की सृष्टि है, मुझे न कोई हरा सके न कोई मार सके। ब्रम्हदेव ने तथास्तु करके चले गए।

वरदान मिलते ही, मूर राक्षस ने समस्त लोकपाल को युद्ध के लिए ललकारा, और सबको परास्थ करके सभी लोकों मे असुरों को अधिकारी बनादिया। दैत्य सारे बिपरित भावना वाले होते है, उन्होंने सभी ब्राम्हण, भक्त, संत, साधारण मनुष्य और गो माताओं को सताने, मारने और अत्याचार करने लगे। सारे देवताओं ने ये दुखद समाचार लेके भगवान शंकर के पास गए, भगवान शंकर ने मूर राक्षस के बिरुद्ध युद्ध करने का आश्वासन दिया।

तब सभी देवताओं ने अपनी पार्षद के सहित युद्ध के लिए मूर राक्षस को ललकारा,मूर की बिजय तो निश्चित था उसको वरदान जो प्राप्त था। देवताओं ने तुरंत भगवान विष्णु का स्मरण किया और भगवान विष्णु ने अपनी सुदर्शन चक्र को छोड़ दिया। परंतु वरदान के कारण सुदर्शन मूर की परिक्रमा करते हुए उसे मारे बिना भगवान विष्णु के पास लौट आया।

भगवान विष्णु और मूर दैत्य के बीच 10 हजार बर्ष तक लंबा युद्ध चला, भगवान विष्णु ने अपनी लीला की रचना करते हुए युद्ध से भागे और बद्रीक आश्रम मे एक गहरी गुंफा मे घुस गए। लंबी युद्ध के कारण भगवान श्रम से निद्रा अवस्था मे आगाए, मूर राक्षस ने भगवान की पीछा करते हुए गुंफा के अंदर प्रवेश किया और भगवान विष्णु को ललकारा।

उसिसमय भगवान की हृदय से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, और वो शक्ति एक कन्या का रूप लेकर अपनी दिव्य आयुधों से एक क्षण मे मूर राक्षस को मार गिराया। देवताओं की पुष्प बर्षा और स्तुति गान से भगवान बिष्णु उठे और कन्या के रूप मे प्रकट दैवी शक्ति को प्रणाम किया और जो घटित हुआ उसके बारे मे जाना। भगवान बिष्णु बहुत प्रसन्न हुए और 11 वी तिथि मे प्रकट होने के कारण उस दिव्य शक्ति को एकादशी का नाम दिया। एकादशी को भगवान विष्णु ने अष्ट सिद्धि नौ निधि का स्वामिनी बनाया और ये बचन दिया जो एकादशी में व्रत रखेगा उससे मोक्ष प्राप्त होगा।

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5 Benefits of Ekadashi
5 Benefits of Ekadashi

शास्त्र में संदर्भ-Reference in Shastra

कस्मादेकादशी श्रेष्ठा तस्याः को वा विधिः स्मृतः ।
कदाचित् क्रियते किं वा फलं तस्या वदस्व मे ॥ ४ ॥


का वा पूज्यतमा तत्र देवता सद्गुणार्णव ।
अकुर्वतः स्यात्को दोषस्तन्मे वक्तुमिहार्हसि ॥ ५ ॥


(पद्म पुराण - 7.22.4-5)
अनुबाद : हे गुरुदेव! एकादशी का जन्म कब हुआ और वह किससे प्रकट हुई? एकादशी के व्रत के नियम क्या हैं? कृपया इस व्रत के पालन से क्या लाभ होता है तथा इसे कब करना चाहिए इसका वर्णन करें। श्रीएकादशी के परम पूजनीय इष्टदेव कौन हैं? एकादशी का ठीक से पालन न करने से क्या दोष होते हैं? कृपया मुझ पर दया करें और इन विषयों के बारे में बताएं, क्योंकि ऐसा करने में आप ही एकमात्र व्यक्तित्व हैं। 

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4 बड़ी एकादशी कौन सी है? -Types of Ekadashi

शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का 11 वा तिथि को एकादशी होता है। इसी प्रकार महीने मे 2 और बर्ष मे 24 एकादशी होते हैं। इन 24 एकादशी में से 4 एकादशी ऐसी है जो अधिकतर लोग पालन करते है, इसे बड़ी एकादशी भी कहते है। जो लोग वृद्ध है, स्वस्थ नही है ओ 24 मे से ये 4 एकादशी ही करते है।

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बर्ष के 4 बड़ी एकादशी
  • आमलकी एकादशी – फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ‘आमलकी एकादशी‘ कहा जाता है।इसे ‘आवंला एकादशी‘ और ‘रंगभरनी एकादशी‘ के नाम से भी जाना जाता है।
  • देवोत्थान एकादशी – कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी कहा जाता है, यह दीपावली के बाद आने वाली एकादशी है। देवोत्थान एकादशी को ‘देवउठनी एकादशी‘ या ‘प्रबोधिनी एकादशी‘ भी कहा जाता है।
  • निर्जला एकादशी – ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ‘निर्जला एकादशी‘ कहाजाता हैं। इस दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान नारायण की पूजा-अर्चना की जाती है। इस एकादशी के दिन बिना जल ग्रहण किए निर्जल रहकर व्रत रखा जाता है। निर्जला एकादशी को ‘भीम एकादशी‘ या ‘पांडवा एकादशी‘ भी कहा जाता है।
  • पापमोचनी एकादशी – चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘पापमोचनी एकादशी‘ कहा जाता है।

एकादशी व्रत के नियम – Rules of Ekadashi

पवित्र एकादशी व्रत के बारे मे हमारे शास्त्रों मे बिधान बताए गए हैं। एकादशी के लिए मुख्यतः तीन दिन का बिधान है, दशमी, एकादशी और द्वादशी। ये तीन दिन तक आपको संयम से चलना है।

  • दशमी के दश नियम : दशमी के दिन खास कर दस नियमों का पालन करना है और दस चीजों को बर्जित करना है,
  1. कांसे के पात्र (bronze vessel) मे भोजन ना करे।
  2. मसूर की दाल ना खाए।
  3. मांश का स्पर्श ना करे।
  4. चना का सेवन ना करे।
  5. कोदो (Kodo millet) ना पावे।
  6. साग ना पावे।
  7. शहद ना खाए।
  8. दूसरे के द्वारा दिया हुआ भोजन ना करे।
  9. दो बार भोजन ना पावे।
  10. मैथुन क्रिया ना करे।
  • एकादशी के ग्यारह नियम : एकादशी का दिन बड़ा ही महत्वपूर्ण है। इस दिन खास कर भगवान के निकट वास करना चाहिए और कुछ नियमों का पालन जरूर करना चाहिए,
  1. जुआ नही खेलना है, और दूसरों को भी जुआ खेलते हुए नहीं देखना है।
  2. नींद नहीं करना है।
  3. दतून नहीं करना है।
  4. पान नहीं खाना है।
  5. चोरी नहीं करना है।
  6. हिंसा नहीं करना है।
  7. क्रोध नहीं करना है।
  8. मिथ्या नहीं बोलना है।
  9. मैथुन नहीं करना है।
  10. हरी का वास करना है।
  11. आहार नहीं लेना है। चाहे तो थोड़ा जल और फल आहार कर सकते है।
  • द्वादशी के बारा नियम : दसमी और एकादशी के उपरांत द्वादशी को व्रत का पारण होता है। इसी दिन भी खुस खास नियमों को पालन करना चाहिए,
  1. कांसे के पात्र (bronze vessel) मे भोजन ना करे।
  2. मसूर की दाल ना खाए।
  3. मांश का स्पर्श ना करे।
  4. मदिरा पान ना करे।
  5. अत्यधिक तेल मे पका हुआ पकवान ना खाए।
  6. मिथ्या ना बोले।
  7. शहद ना खाए।
  8. अत्यधिक व्यायाम ना करे।
  9. परदेश गमन ना करे।
  10. दो बार भोजन ना पावे।
  11. अस्पर्श को स्पर्श ना करे।
  12. मैथुन क्रिया ना करे।

एकादशी के आध्यात्मिक और बैज्ञानिक लाभ – Spiritual and Scientific Benefits of Ekadashi

शुक्ल पक्ष एकादशी अर्थात (11th day of Waxing Moon) जो चंद्रमा की अमावस्या से पूर्णिमा की गति पर पड़ता है। कृष्ण पक्ष एकादशी अर्थात (11th day of Waning Moon) जो चंद्रमा की पूर्णिमा से अमावस्या की गति पर पड़ता है।

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  1. इंद्रियों का संतुलन-Balancing of Senses : ऊपवास का शाब्दिक अर्थ निकट मे वास करना होता है, जैसे ही आप आध्यात्मिक स्थिति में भगवान विष्णु के निकट मे जप करते हो, कीर्तन करते हो, सत्संग करते हो आपकी सारी इंद्रियाँ भगवान के सेवा मे लग जाते है। जिससे आपकी 11 इंद्रियाँ ( 5 ज्ञान इंद्रिय,5 कर्म इंद्रिय और 1 मन इंद्रिय ) का संतुलन बना रहता है।
  2. लंबी उम्र-Long Life : Biology मे एक शब्द है Junk DNA, शरीर से जितना ज्यादा Junk DNA का खलित होगा उतनी आयु घटेगा। इसीलिए अगर कोई ब्यक्ति 15 दिन में 2 बार Fasting करता है उसका Junk DNA भी धीमी मात्रा से खलित होता है। और हमेशा Vegetables तथा Veg खाने वाले लोग का मांसाहारी लोगों से ज्यादा समय काल होता है।
  3. बिचारों का संतुलन-Balancing of Thoughts : चंद्रमा का पृथ्वी के ऊपर बहुत ही प्रभाव रहता है खास करके अमावस्या और पूर्णिमा के 4 दिन पहले जोकी एकादशी का ही तिथि होती है। हमारे शरीर मै 75% जल है, हमारे ऊपर भी चंद्रमा का प्रभाब रहता है। इसीलिए एकादशी के दिन Fasting रखने से शरीर में और बिचारों में संतुलन बना रहता है।
  4. पाचन तंत्र मे सुधार-Improve Digestive System : Fasting हमारे शरीर का विषाक्त पदार्थों को खत्म करने, पाचन तंत्र को साफ करने और अपशिष्ट उत्पादों के उन्मूलन को बढ़ावा देने में मदद करता है। पाचन और चयापचय में सुधार: एकादशी उपवास में अक्सर भारी और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से परहेज करना शामिल होता है। इसके बजाय, व्यक्ति हल्का, सात्विक (शुद्ध) भोजन खाते हैं जो पचाने में आसान होता है।
  5. मोक्ष की प्राप्ति-Attainment of Salvation : भगवान विष्णु स्वयं एकादशी के देवी को बचन दिया हुआ है की जो भी एकादशी के दिन व्रत करेगा और संयम से रहेगा उससे मोक्ष की प्राप्ति होगी। और सबसे बड़ा लाभ है जीवात्मा को ये संसार के जन्म मृत्यु की चक्र से मुक्ति ,मिल जाएगा।

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एकादशी किसे नहीं करना है?

5 बर्ष से कम आयु के बचे, गर्भवती महिला और वृद्ध ब्यक्ति को एकादशी नहीं करनी चाहिए।

सबसे कठिन एकादशी कौनसी है?

सबसे कठिन एकादशी निर्जला एकादशी, जीसे पांडव एकादशी भी बोला जाता है। इसमे पानी पीना भी मना है।

एकादशी को अन्न क्यूँ नहीं खाना है?

एकादशी के दिन सभी प्रकार के अनाज मे पाप पुरुष का वास होता है। इसीलिए पाप से बचने के लिए अनाज या अन्न नहीं खाना है।

एकादशी व्रत से कौनसे रोग ठीक हो सकते है?

कैंसर जैसे बड़ी बड़ी बीमारी एकादशी व्रत रखने से ठीक हो सकते है।

क्या एकादशी के दिन प्रसाद ग्रहण कर सकते है?

प्रसाद किसीभी मंदिर का हो उससे सन्मान करके छोड़ दीजिए, व्रत के पारण के बाद खा सकते है।

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